जियानकुई : बुढ़ापा रोकने का तरीका बताया एक चीनी वैज्ञानिक जो अतीत में  जा चुका है जेल, मची खलबली…..

जियानकुई : चीन के एक वैज्ञानिक हैं जिनका नाम हे जियानकुई है उनका एक विवादित शोध प्रस्ताव आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है. उनके द्वारा कहा गया है कि बुढ़ापे की बीमारी अल्जाइमर को ठीक करने के लिए वो जीन एडिटिंग के जरिए शोध करेंगे. चीनी वैज्ञानिक पहले भी विवादों में रहे चुके हैं और उनको उनके एक शोध के लिए ही तीन साल जेल की सजा भी कटनी पड़ी थी. ऐसा कहा जा रहा है कि हे जियानकुई ने दावा किया है कि वो इंसानों में आने वाले बुढ़ापे को रोक सकते हैं उनके द्वारा मानव भ्रूण में बदलाव कर इस प्रयोग को करने का सुझाव दिया गया है जिसे लेकर विवाद खड़ा होता नजर आ है.ऐसे ही जियानकुई ने साल 2018 में पहला जीन संशोधित बच्चा बनाने का खुलासा किया था. हालाकिं उनके इस विवादास्पद प्रयोग के बाद उन्हें अवैध चिकित्सा पद्धति अपनाने का दोषी पाए जाने पर तीन साल की सजा हुई थी. पिछले साल जेल से रिहा होने के पश्चात उन्होंने बीजिंग में एक रिसर्च लैब खोलने की घोषणा की थी जिसने मुख्य रूप से चीन के स्वास्थ्य विशेषज्ञों को चौंका दिया था.
तभी से वो जीन-थेरेपी के जरिए दुर्लभ बीमारियों के इलाज पर शोध का कार्य कर रहे हैं. उनके इस नए शोध प्रस्ताव ने एक बार फिर बखेड़ा खड़ा कर दिया है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार जियानकुई पहले भी इस तरह का काम करते थे और अब भी उसी तरह का काम कर रहे हैं.

जियानकुई के  शोध को स्वास्थ्य विशेषज्ञ नैतिकता से परे और बेहद ही बिनाशकारी मान रहे हैं

उनका मानना है कि इससे मनुष्य का डीएनए पीढ़ियों तक प्रभावित हो सकता है. हालाकिं जियानकुई ने इससे पहले जो शोध किए हैं उन शोधों पर उनकी काफी आलोचना भी हुई है. उन्होंने अपना शोध प्रस्ताव ट्विटर पर प्रस्तुत किया है जिसमें वो कह रहे हैं कि उनके शोध में एडिटेड जीन वाले चूहे के भ्रूण शामिल होंगे और फिर युग्मनज (Zygote) यानी मनुष्य/इंसान के निषेचित अंडाणु को शामिल किया जाएगा जिससे यह पता लगाया जा सके कि यह म्यूटेशन अल्जाइमर बीमारी के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है या नहीं ?

जियानकुई ने देश पर आबादी के बोझ का जिक्र करते हुए तेजी से बूढ़े हो रहे लोगों के बारे में भी लिखा, “बूढ़ी होती आबादी सामाजिक, आर्थिक और चिकित्सा प्रणाली पर दबाव के कारण बहुत महत्वपुर्ण चिंतन का विषय है और हमारे पास फिलहाल (अल्जाइमर) इसकी कोई प्रभावी दवा नहीं है. उनके इस प्रयोग में निषेचित अंडाणु कोशिकाओं को शामिल करने की बात सामने आई है जिन्हें महिलाओं के शरीर में प्रत्यारोपित करने को सही नहीं माना जाता है.
प्रस्ताव में इसे लेकर जियानकुई ने कहा, “प्रेग्नेंसी के लिए किसी भी मानव भ्रूण को प्रत्यारोपित नहीं किया जाएगा और इस प्रयोग से पहले सरकार से अनुमति और नैतिक स्वीकृति की जरूरत अनिवार्य रूप से जरुरी होगी.” स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि उनका यह प्रस्ताव वैज्ञानिक दृष्टि से आधारहीन है. जियानकुई के रिसर्च का हवाला देते हुए ही चीन की सरकार ने जीन एडिटिंग और उससे जुड़े नैतिक पहलुओं को रेगुलेट करने के लिए साहसी कदम उठाए हैं.

चीन की मीडिया में छपी रिपोर्टों से यह जानकारी मिलती है कि जियानकुई को प्रजनन तकनीक सेवाओं के इस्तेमाल से रोक दिया गया है और वो मानव जेनेटिक पर भी बहुत कम काम कर सकते हैं.
जियानकुई आनुवांशिक बदलाव कर अल्जाइमर को रोकना चाहते हैं इस शोध प्रस्ताव पर सिंगापुर में नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर पीटर ड्रोगे ने कहा, ‘स्पष्ट रूप से कहें तो उनकी पूरी बात मुर्खतापूर्ण है. यह नैतिकता की दृष्टि से बिल्कुल गलत है साथ ही एक बीमारी के इलाज के लिए लोगों के जीन में बदलाव करना, इंसान के जीवन के साथ खेलने जैसा है, यह लोगों के पूरे जीवन को प्रभावित करेगा. दरअसल एक ऐसी बीमारी के लिए यह सब करने की बात हो रही है जिसका कारण केवल आनुवंशिक ही नहीं है अपितु कुछ और सम्भव है ? पीटर ड्रोगे ने कहा कि जियानकुई मुख्य रूप से मानव जाति को आनुवंशिक रूप से परिवर्तित करना चाहते हैं जिससे मनुष्यों अथवा इंसानों को अल्जाइमर न हो. मैं तो यह सोच कर परेशान हूं कि जियानकुई फिर से ऐसा कुछ करने की सोच रहे हैं. ?

ब्रिटेन में केट विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर ग्लोबल साइंस एंड एस्टेमिस की संस्थापक निदेशक जॉब ग्रांग ने कहा कि उनका शोध प्रस्ताव पब्लिसिटी स्टंट लग रहा है.
जॉब ग्रांग के अनुसार: ‘हालांकि, हमें उनके इन सार्वजनिक दावों को सतर्कता से लेने की जरूरत है, क्योंकि यह रोगियों और उनके परिवारों को गुमराह कर सकता है. ऐसा करने से यह न केवल चीन की प्रतिष्ठा को खराब कर सकता है बल्कि इस क्षेत्र में वैश्विक रिसर्च के प्रयासों को भी कमजोर कर सकता है. ऐसा जॉब ग्रांग का मानना है.

जियानकुई ने कहा-इस शोध को करने के लिए सरकार से अनुमति आवश्यक

जियानकुई ने कहा कि वो अभी वैज्ञानिकों से इस शोध को लेकर उनकी प्रतिक्रिया ले रहे हैं और इस शोध की कोई तय समय सीमा अभी निश्चित नहीं है.
जियानकुई सीएनएन से बातचीत में बताया, मैं अल्जाइमर को लेकर प्रस्ताव में बाद में संशोधन करूंगा, जब तक सरकार मुझे अनुमति नहीं देती, मैं कोई प्रयोग नहीं करूंगा. जियानकुई ने साफ शब्दों में कहा कि वह अमेरिका और यूरोप के वैज्ञानिकों और इंटरनेशनल एथिक्स कमिटी की स्वीकृति के बाद ही कोई प्रयोग करेंगे. जियानकुई के अनुसार वह इस बात पर बल देना चाहते हैं कि यह एक प्रीक्लिनिकल स्टडी है. इसके अनुसार गर्भावस्था के लिए किसी भी भ्रूण का उपयोग नहीं किया जाएगा. शोध खुला और पारदर्शी होगा एवं प्रयोग के सभी परिणाम और उससे जुड़ी बातें सार्वजनिक की जाएंगी.

 

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