आकाशीय बिजली (तड़ित/दामिनी) के बारे में
आकाशीय बिजली (तड़ित/दामिनी) एक प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ एक ऐसी घटना है, जिसने इंसानों के दिलो-दिमाग़ को लुभाने के साथ-साथ भयभीत भी किया है। बिजली आसमान से हर सेकेंड में 50 से 100 बार धरती पर गिरती है। पूरी दुनिया में हर साल 20,000 से अधिक लोग आकाशीय बिजली की चपेट में आते हैं और बिजली गिरने से हज़ारों लोगों की मौत भी हो जाती है। किसी भी इलाके में बिजली गिरने से होने वाली मौतों में उस इलाके के जनसंख्या घनत्व, साक्षरता दर और शहरीकरण के साथ-साथ तड़ित घनत्व तथा पर्वत-विज्ञान की अहम भूमिका होती है। भारत में हर साल बिजली गिरने से 2000 से अधिक लोगों की मौत होती है। भारत में बिजली गिरने से सबसे अधिक मौतें महाराष्ट्र में दर्ज की गई हैं। खास तौर पर, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्र में भारत में बिजली गिरने से सर्वाधिक मौतें होती हैं। विद्युत आपूर्ति में बाधा तथा जंगल में आग की घटनाओं के प्रमुख कारणों में आकाशीय बिजली भी शामिल है। इससे संचार एवं कंप्यूटर उपकरणों के साथ-साथ विमान भी क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
संभवत: अन्य किसी भी प्राकृतिक घटना ने इतना भय, रोमांच और आश्चर्य उत्पन्न नहीं होता होगा जितना तड़ितपात और बादलों की कड़क से उत्पन्न होता है। अनादि काल से संसार के प्राय: सभी देशों में यह विश्वास प्रचलित था कि तड़ित ईश्वर का दिया हुआ एक दंड है, जिसका उपयोग वह उस प्राणी, वस्तु अथवा स्थान पर करता है जिसके ऊपर वह क्रोधित/ कुपित हो जाता है ऐसा कहा जाता है कि ग्रीक और रोमन देशवासी इसे भगवान जुपिटर का प्रहारदंड मानते थे सम्भवतः आज भी बहुत से लोग ऐसा ही समझते हैं।
भारत के ज़्यादातर हिस्सों में सालों भर किसी न किसी समय तड़ित-वृष्टि (आंधी-तूफ़ान और बिजली के साथ तेज़ बारिश) होती है। भारतीय इलाकों में तड़ित-वृष्टि के जलवायु-विज्ञान से पता चलता है कि मानसून से पहले के महीनों में दक्षिण भारत में आंधी-तूफ़ान और बिजली के साथ तेज़ बारिश की घटनाएँ सबसे अधिक होती हैं, जबकि उत्तर भारत की ओर ऐसी घटनाएँ काफी कम होती हैं। दूसरी ओर, मानसून के दौरान उत्तर भारत में आंधी-तूफ़ान और बिजली के साथ तेज़ बारिश की घटनाएँ अधिकतम होती है और इस मौसम में दक्षिण भारत में ऐसी घटनाएँ काफी कम होती हैं। 30 वर्षों (1950-1980) के IMD डेटा की मदद से त्यागी (2007) द्वारा भारतीय इलाकों में तड़ित-वृष्टि के जलवायु-विज्ञान पर किए गए अध्ययन से पता चलता है कि, भारत के उत्तर-पूर्वी भाग, केरल के कुछ हिस्से तथा जम्मू-कश्मीर के कुछ इलाकों में वार्षिक तड़ित-वृष्टि की आवृत्ति सबसे अधिक है, जहाँ हर साल 80 से अधिक बार तड़ित-वृष्टि की घटनाएँ होती हैं।
आकाशीय बिजली से होने वाली क्षति एवं इसे कम करने के उपाय:
अक्सर लोग तड़ित-वृष्टि के जोखिम को कम करके आंकते हैं तथा निकट आने वाले तूफ़ान से बचाव के लिए जल्दी से उपयुक्त आश्रय की तलाश नहीं करते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप लोगों को चोट लगने और मौत की घटनाएँ होती हैं। आकाशीय बिजली से होने वाली क्षति को न्यूनतम करने के लिए, बिजली गिरने के खतरों से निपटने से संबंधित शैक्षिक कार्यक्रम बेहद ज़रूरी हैं। ग्रामीण इलाकों को लक्षित करते हुए ऐसे कार्यक्रम तैयार किए जाने चाहिए, जहाँ अक्सर लोग खेतों में काम करते हैं। हालाँकि कोई भी जगह आकाशीय बिजली से पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है, फिर भी बड़ी, चारों ओर से बंद इमारतें या कार, ट्रक, बस, वैन तथा कृषि वाहन सहित चारों ओर से बंद धातु के वाहन बिजली गिरने के मौसम में शरण लेने के लिए अच्छे विकल्प हैं। भारत में ज़्यादातर खेतों में काम करने वाले लोग ही आसमान से गिरने वाली बिजली की चपेट में आते हैं।
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